जैसे सुख का आनंद आता दुःख के संहार से,
हारता न जो कोई, तो कोई जीतता कैसे भला,
दुःख जो न होता ग़र तो सुख का कैसे चलता पता,
जीतते जीतते जो भूल जाते हैं हार को,
झेल पते हैं नहीं वो इस श्रृष्टि की मार को...
इस श्रृष्टि की मार को...!!
हारता न जो कोई, तो कोई जीतता कैसे भला,
दुःख जो न होता ग़र तो सुख का कैसे चलता पता,
जीतते जीतते जो भूल जाते हैं हार को,
झेल पते हैं नहीं वो इस श्रृष्टि की मार को...
इस श्रृष्टि की मार को...!!
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