
काश अपना धीरज भी,
होता सागर की गहराई सा,
कट जाता मौसम,
ये सारा तनहाई का,
याद आती है बहुत,
ग़म है बहुत बड़ा जुदाई का,
खैर...
यादें आपकी साथ हैं,
और PCO भी पास है,
आप हैं यहाँ नहीं,
पर आपके एहसास हैं,
इन् आँखों को ना सही,
पर कानों को आराम है,
धन्य है वो ग्राहम बेल,
फ़ोन जिसका आविष्कार है,
आज तो मेरा उसको भी,
शत शत नमस्कार है... :)!
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