बोल रहा मन धीरे से,
ऊब गया हूँ जीवन से,
हर सुख से हर साधन ,
फूलों से हर गुलशन से,
हर दुःख से हर तड़पन से,
तब कहे ह्रदय मेरे मन से,
उठा नज़र अपने तन से,
सोंच ज़रा अपनेपन से,
जो जुट जाये तू तन मन से,
गूँज उठे गुंजन स्वर से,
महक उठे गुलशन बंजर से,
क्या कुछ न तेरे बस में...
फिर क्यूं ऊबा तू जीवन से ?
कैसे बन सकता है कोई
ऐसे उलटे चिंतन से,
आगे चल क्या करना अतीत से,
जीवन तो जीने को हो क्या होगा मरने से,
भला तो है जीवन का अच्छी राह पे चलने से
... अच्छी राह पे चलने से...!!
ऊब गया हूँ जीवन से,
हर सुख से हर साधन ,
फूलों से हर गुलशन से,
हर दुःख से हर तड़पन से,
तब कहे ह्रदय मेरे मन से,
उठा नज़र अपने तन से,
सोंच ज़रा अपनेपन से,
जो जुट जाये तू तन मन से,
गूँज उठे गुंजन स्वर से,
महक उठे गुलशन बंजर से,
क्या कुछ न तेरे बस में...
फिर क्यूं ऊबा तू जीवन से ?
कैसे बन सकता है कोई
ऐसे उलटे चिंतन से,
आगे चल क्या करना अतीत से,
जीवन तो जीने को हो क्या होगा मरने से,
भला तो है जीवन का अच्छी राह पे चलने से
... अच्छी राह पे चलने से...!!
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